योग से मन रहता है शांत

योग से मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता है, लेकिन चिकित्सा शोधों ने ये साबित कर दिया है की योग शारीरिक और मानसिक रूप से वरदान है. योग से तनाव दूर होता है और अच्छी नींद आती है, भूख अच्छी लगती है, इतना ही नहीं पाचन भी सही रहता है.

योग है तन और मन का व्‍यायाम

अगर आप जिम जाते हैं, तो यह आपके शरीर को तो तंदुरुस्त रखेगा, लेकिन मन का क्‍या. वहीं अगर आप योग का सहारा लेते हैं, तो यह आपके तन के साथ ही साथ मन और मश्तिष्‍क को भी तंदुरुस्त करेगा.

योग करने से दूर भागते है रोग

योगाभ्यास से आप रोगों से भी मुक्ति पा सकते हैं. योग से रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है. योग से शरीर स्वस्थ और निरोग बनता है.

योग से होता है वजन नियंत्रण

योग मांस पेशियों को पुष्ट करता है और शरीर को तंदुरुस्त बनाता है, तो वहीं दूसरी ओर योग से शरीर से फैट को भी कम किया जा सकता है.

योग से ब्लड शुगर लेवल करे कंट्रोल

योग से आप अपने ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करता है और बढ़े हुए ब्लड शुगर लेवल को घटता है. डायबिटीज रोगियों के लिए योग बेहद फायदेमंद है. योग बैड कोलेस्ट्रोल को भी कम करता है.

पृथ्वी मुद्रा


पृथ्वी मुद्रा


- पृथ्वी मुद्रा करने के लिए सबसे पहले पद्मासन या सुखासन की मुद्रा में बैठ जाये।

- अपनी हथेलियों को जांघों पर रखें और सांस पर ध्यान लगाएं।

- अब अपनी अनामिका (रिंग फिंगर) को अंगूठे के टिप से जोड़ें।

- बहुत अधिक दबाव न डालें। ऐसा दोनों हाथों से करें।

- बाकी बची हुई तीनों अँगुलियों को उपर की और सीधा तान कर रखें।

- इस मुद्रा की खासियत यह है की आप इसे कभी भी कही भी कर सकते है।

भ्रामरी प्राणायाम


भ्रामरी प्राणायाम

- किसी भी आसान मुद्रा में बैठें |

- अपनी उँगलियां आँखों पर रख कर आँखे बंद कर ले | आँखों पर दबाव न पड़े इसका ध्यान रखें | अंगूठे से कान बंद कर लें |

- अब सांस अंदर लेकर एक मधुमक्खी की तरह गूंज करिए, जैसे उम्म्मम्म ध्वनि बनाते हुए नाक के माध्यम से साँस छोडिये। ५ से १० राउंड करो।


चिन्मय मुद्रा


चिन्मय मुद्रा


- इस मुद्रा में अंगूठा और तर्जनी चिन मुद्रा की तरह एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, शेष उंगलियाँ मुड़कर हथेली को स्पर्श करती हैं। 

- हाथों को जाँघो पर हथेलियों को आकाश की ओर करके रखे और लंबी गहरी उज्जयी साँसे लें।

- एक बार फिर साँस के प्रवाह और शरीर पर इसके प्रभाव को महसूस करें।

बाह्य प्राणायाम


बाह्य प्राणायाम

- सबसे पहले किसी समतल और स्वस्छ जमीन पर चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन, सुखासन की अवस्था में बैठ जाएं।

- सबसे पहले मध्यपट को नीचे झुकाये और फेकडो को फुलाने की कोशिश करे।

- अब तेजी से अपना स्वास छोड़ें ऐसा करते समय अपने पेट पर भी थोडा जोर दे।

- अब धीरे-धीरे अपनी छाती को ठोड़ी लगाने की कोशिश करे और अपने पेट को हल्के हाथो से दबाकर साँस बाहर निकलने की कोशिश करते रहे।

- इसी अवस्था में कुछ देर तक रुकें।

- अब धीरे-धीरे अपने पेट और मध्यपट को छोड़े और उन्हें हल्का महसुस होने दे।

- अब इसी प्रिक्रिया को कम से कम 5-7 बार दोहरायें।

प्लाविनी प्राणायम


प्लाविनी प्राणायम

- सबसे पहले आप पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं।

- दोनों नासिका छिद्र से धीरे धीरे सांस लें।

- अब साँस को अपनी क्षमता के अनुसार रोककर रखें ।

- फिर दोनों नासिका छिद्रो से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।

- यह एक बार हुआ।

- इस तरह आप 10 से 15 बार करें। और फिर धीरे धीरे इसके अवधि को बढ़ाते रहें।

ज्ञानमुद्रा


ज्ञानमुद्रा


- पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक चटाई या योगा मैट बिछा दे।

- अब पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाये।

- अपने हाथों को घुटनों पर रखे और हाथों की हथेली ऊपर की ओर आकाश की तरफ होनी चाहिए।

- अब तर्जनी उंगली (अंगूठे के साथ वाली) को गोलाकार मोडकर अंगूठे के अग्रभाग (सिरे) को स्पर्श करना हैं।

- अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखना हैं।

- यह ज्ञान मुद्रा दोनों हाथो से कर सकते हैं।

- आँखे बंद कर नियमित श्वसन करना हैं।

- साथ में ॐ का उच्चारण भी कर सकते हैं। मन से सारे विचार निकालकर मन को केवल ॐ पर केन्द्रित करना हैं।

- दिनभर में कम से कम 30 मिनिट से 45 मिनिट करने पर लाभ मिलता हैं।


शीर्षासन


शीर्षासन

- शीर्षासन के लिए पहले जमीन पर दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं। आसन के लिए किसी मोटे गद्दे या दरी को सिर के नीचे रखकर ही शीर्षासन को करें।

- आसन के लिए पहले घुटनों के बल नीचे बैठ जाएं। अब अपने हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसा लें और हथेलियों को ऊपर की ओर करके गद्दे पर टिकाएं।

- हथेलियों को गद्दे पर रखते हुए हथेली से कोहनी तक के भाग को जमीन से सटाकर रखें। अब धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते हुए सिर को हथेलियों पर रखकर सिर का संतुलन बनाएं।

- अब दोनों पैरों को मिलाकर घुटनों से मोड़कर पिण्डलियों को ऊपर की ओर सीधा करके शरीर के भार को सिर पर डालते हुए संतुलन बनाएं। इस स्थिति में केवल सिर से कमर तक का भाग सीधा रखें। प्रारम्भ में आसन को इस स्थिति में कई दिनों तक करें।

- जब इसमें सफलता मिल जाएं तो फिर जांघों को धीरे-धीरे सीधा करने की कोशिश करें और शरीर का संतुलन सिर पर बनाकर रखें।

- जांघों को सीधा करके इसे भी कई दिनों तक करें और इसमें सफलता मिलने के बाद फिर दोनों पैर के बीच एक फुट की दूरी रखते हुए दोनों पैरों को भी धीरे-धीरे सीधा करें।

- आसन की इस स्थिति को कई दिनों तक करते हुए पूरे शरीर का संतुलन सिर पर बनाकर रखें। आसन की इस स्थिति के बाद दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पैर समेत पूरे शरीर को सीधा करके संतुलन बनाकर रखें। आसन को इस प्रकार से कई भागो में करते हुए शीर्षासन को पूर्ण करें तथा इस आसन को करने में जल्दबाजी न करें।

- शुरू-शुरू शीर्षासन को करते हुए 15 से 20 सैकेंड तक आसन की स्थिति में रहें और धीरे- धीरे इसका समय बढ़ाते हुए 15 से 20 मिनट तक करें। इस आसन में पूर्ण सफलता मिलने के बाद इस आसन को 1 घंटे तक कर सकते हैं। आसन की पूर्ण स्थिति को करने के बाद पुन: धीरे-धीरे शरीर को जमीन पर लाएं।

- इसके बाद सीधे खड़े हो जाएं और फिर पूरे शरीर को ढीला छोड़कर सांस क्रिया करें। इस क्रिया को करने में शरीर का खून का बहाव सीधे होकर पूरे शरीर में पहुंच जाता है।

- इस आसन के साथ प्राणायाम क्रिया करने से शीर्षासन का पूरा लाभ मिलता है। शीर्षासन का अभ्यास करते समय श्वास-प्रश्वास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की क्रिया को सामान्य रखें।

- आसन के समय चित्त को शांत रखें, मन की चंचलता को दूर कर इस आसन को करें और शरीर को साधकर स्थिर रखने की कोशिश करें।