कुम्भक प्राणायाम
कुम्भक 2 प्रकार का होता है-
- आंतरिक कुम्भक: इसके अंतर्गत नाके के छिद्रों से वायु को अंदर खींचकर जितनी भी देर तक श्वास को रोककर रखना संभव हो रखा जाता है और फिर धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ दिया जाता है।
- बाहरी कुम्भक: इसके अंतर्गत वायु को बाहर छोड़कर जितनी देर तक श्वास को रोककर रखना संभव हो रोककर रखा जाता है और फिर धीरे-धीरे श्वास को अंदर खींच लिया जाता है।
- कुम्भक क्रिया का अभ्यास सुबह, दोपहर, शाम और रात को कर सकते हैं। कुम्भक क्रिया का अभ्यास हर 3 घंटे के अंतर पर दिन में 8 बार भी किया जा सकता है।
- ध्यान रहे कि कुम्भक की आवृत्तियाँ शुरुआत में 1-2-1 की होनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि श्वास लेने में एक सेकंड लगता है तो उसे दो सेकंड के लिए अंदर रोके और दो सेकंड तक बाहर निकालें। फिर धीरे-धीरे 1-2-2, 1-3-2, 1-4-2 और फिर अभ्यास बढ़ने पर कुम्भक की अवधि और भी बढ़ाई जा सकती है।
- ॐ के एक उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्रा माना जाता है। सामान्यतया एक सेकंड या पल को मात्रा कहते हैं।