वरूण मुद्रा


वरूण मुद्रा


- पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ।

- रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें।

- हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्का) को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है।

- जल तत्व और अग्नि तत्व (अंगूठें) को एकसाथ मिलाने से बदलाव होता है।

- छोटी उंगली के आगे के भाग और अंगूठें के आगे के भाग को मिलाने से 'वरुण मुद्रा' बनती है।

- बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।


0 comments:

Post a Comment